पीएम के संसदीय सीमा और केन्द्रीय मंत्री व कैबिनेट मंत्री के क्षेत्र से लगे यह गांव बदहाल
Varanasi : लोहता, यूं तो विकास के इतने दावें सुन चुके हैं कि ऐसा लगता है कि अब बनारस जिले में करने को कुछ बचा ही नहीं। वहीं दूसरी ओर समय-समय पर जिले के ग्रामीण अंचलों से ऐसी खबरें भी आती हैं जिन पर यकीन करना मुश्किल होता है। आश्चर्य इस बात का होता है कि इन ग्रामीणों को आज तलक भी अपने गांव या घर तक पहुंचने के लिए व्यवस्थित रास्ता तक नसीब नहीं हो सका है। चार पहिया वाहन तो दूर बाइक तक वहां नहीं ले जा सकते। पैदल चल पाना भी मुश्किल है। ग्रामीण सबके पास गुहार लगा चुके हैं, लेकिन आज तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हो सकी है।
सरकार द्वारा गांवों की सूरत बदलने का दावा तो खूब किया जाता है, लेकिन कुछ गांव ऐसे भी हैं जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. ऐसा ही एक गांव है, यह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और रोहनिया विधायक डा. सुनील पटेल के विधानसभा से सटे केन्द्रीय मंत्री डा. महेंद्र नाथ पांडेय के संसदीय क्षेत्र चंदौली और कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर के विधान सभा क्षेत्र शिवपुर के बुनकर बाहुल्य आबादी वाला चाँदपुर भदोही मार्ग के पास स्थित धन्नीपुर गाँव.
शहरी सीमा से सटे विकास खंड विद्यापीठ का यह गाँव जहां की सड़क नाले में तब्दील हो गई, जिसका दंश इस गांव समेत आस-पास के दर्जन भर गांवो के ग्रामीणों को झेलना पड़ रहा है. यह सड़क काफी है, गांव की बदहाल तस्वीर को बयां करने के लिए. यह तस्वीर काफी है सरकार की मंशा को धत्ता बता रहे प्रशासन की अनदेखी को बताने के लिए.
निर्माणाधीन फोरलेन चाँदपुर भदोही मार्ग से जुड़े ढाई हजार से अधिक लोगों की आबादी वाले इस गांव की यह मुख्य सड़क है, जिससे होकर यहाँ तक के लोग शहर सहित लोहता व भदोही और रिंगरोड तक का रास्ता तय करते हैं, लेकिन ख़स्ताहाल और प्रशासनिक अनदेखी के चलते जानलेवा गड्ढो वाली यह सड़क अब नाले में तब्दील हो चुकी है. इस सड़क पर अब करीब 2 फीट तक पानी भरा हुआ है, इसी अवजल के बीच से यहां के ग्रामीणों को होकर गुजरना पड़ता है, बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों सहित दिव्यांगो को भारी जद्दोजहद कर इस रास्ते से आना जाना पड़ता है.
इस बदहाली की जानकारी मिलने पर सोमवार को धन्नीपुर गाँव पहुँचे सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता ने ज़िम्मेदारों को ट्वीट कर कहा कि देश के विकास का रास्ता गांव की गलियों से होकर ही गुजरता है। मगर तमाम दावों, वादों और योजनाओं के बावजूद आज भी गांवों की तरफ विकास अपना रुख नहीं कर पाया है, जिससे तरक्की का रास्ता और गुलजार हो सके। सरकार बनवाने में ग्रामीणों का विशेष योगदान होता है, लेकिन चुनाव के बाद गांव की तरफ शायद ही कोई जनप्रतिनिधि रुख करता हो। चुनाव जीतने के बाद वह पूरे पांच साल तक उसे भूल जाता है। कुछ विरले होते हैं, जो अपने क्षेत्र में लगातार संपर्क बनाए रखते हैं। यह उदासीनता ठीक नहीं है।
गांव में चारपहिया वाहन तो दूर बाइक तक आसानी से नहीं जा सकती। ऐसे में कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाए या गर्भवती महिला को अस्पताल पहुंचाना हो तो एंबुलेंस भी गांव तक नहीं पहुंच पाती। ऐसे में ग्रामीण उन्हें किसी तरह भदोही मार्ग तक ले जाते हैं। उसके बाद एंबुलेंस लेकर जाती है। कई बार इसी मशक्कत में इतनी देर हो जाती है कि गर्भवती महिला या गंभीर बीमार की जान तक चली जाती है। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि पहले कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। स्कूली बच्चों को गोद में लेकर स्कूल पहुँचाना आम बात हो गया है।
सबके सामने लगा चुके गुहार, सुनवाई नहीं
ग्रामवासियों का कहना है कि सड़क बनवाने के लिए हम सारे जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं। अधिकारियों को भी अपना दुखड़ा सुना चुके हैं, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। वोट लेने के लिए नेता बड़े-बड़े आश्वासन जरुर देते हैं, लेकिन चुनाव में जीतते ही दोबारा गांव की ओर झांक कर भी नहीं देखते हैं। वहीं अधिकारियों ने भी कभी उनकी समस्या को संजीदगी से नहीं ली। यही कारण है कि आजादी के अमृत महोत्सव में भी यहां के लोग इतनी तकलीफें झेलते हुए जैसे-तैसे जीवन जीने को मजबूर हैं। लगातार अनदेखी से ग्रामीणों में खासा आक्रोश है।
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