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 शिक्षित और संस्कारवान बनाने को गढ़ रहे प्रतिभा - शिक्षक दिवस पर विशेष

शिक्षित और संस्कारवान बनाने को गढ़ रहे प्रतिभा - शिक्षक दिवस पर विशेष

Varanasi , भारत के बारे में बात करते समय पूरा विश्व एक अलग प्रकार के देश के बारे में अवधारणा प्रस्तुत करता है। ऐसा राष्ट्र जहां पर ज्ञान का भंडार है,आध्यात्म है, बहु आयामी संस्कृति है,उदार मन के लोग हैं और अहिंसा को सर्वश्रेष्ठ धर्म बताने वाले जन जन। योगी, हठ योगी, वैराग, ब्रह्मचर्य पराविद्या की बताने वाले साधु संत है। राह चलते ज्ञान की बात सिखाने वाले आदर्श पुरुष तो प्रवचन के माध्यम से आम और खास जन के व्यक्तित्व परिवर्तित करने वाले प्रवचन कर्ता भी है। सीख तो भारत का राजनेता भी गांव की गलियों चट्टी,चौराहों और हर दिन होने वाले तमाम आयोजनों में देता है। इन्हीं सबके बीच ज्ञान की धारा बहाने वाला बच्चों को अक्षर ज्ञान से लेकर के उच्च शिक्षा प्रदान कर भविष्य की राह दिखाने वाला शिक्षक भी ज्ञान योगी बनकर भारत के भविष्य को ज्ञानार्जन कराता है, संस्कार गढ़ता है। आज हम आंकड़ों की बात नहीं करेंगे।अगर हम समुच्चय रूप में अपनी बात रखें तो भारत के आदिकाल की ओर भी देखना होगा। कहा जाता है कि तब भारत के प्रत्येक गांव में पाठशाला होती थी।भारत का जन जन पढ़ा लिखा होता था। मातृशक्ति भी विदुषी होती थी उसे सिर्फ पढ़ने का ही अधिकार नहीं था बल्कि शास्त्रार्थ करने का भी गौरवशाली अधिकार था। कालांतर में एक बड़ी संख्या शिक्षा से वंचित हुई। अज्ञानत के गहरे समुद्र में बड़ी जनसंख्या डूबी रही। जिसे निकालने का प्रयास इस देश के शिक्षकों ने किया।वह ज्ञान प्रदाता जो था।औपचारिक और अनौपचारिक रूप से उसने भारत के भविष्य को गढ़ने की जिम्मेवारी अपने ऊपर ली।वह भी तब जब शिक्षकों को बहुत आमदनी नहीं मिलती थी।भारत के गांव-गांव,पहाड़, संसाधन विहीन दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षकों ने इस अभियान को पूर्णिया। कुछ पाकर भी बहुत कुछ दिया।पाठशालाओं के माध्यम से वे दिन-रात लगकर लोगों को शिक्षित किए। मात्र कहानियां नहीं यह सच है कि शिक्षक अपने छात्र के लिए मिट्टी के तेल के उजाले में भी,सिर्फ दिन के कार्य अवधि में नहीं बल्कि रात में भी शिक्षा प्रदान करते थे। छात्र कब विद्यालय योग्य होगा लोगों के घर पहुंच बताते थे। छात्र का रिपोर्ट चार्ट बच्चों के घर अभिभावक से मिल कर देते थे। इस अथक प्रयास से अधिकांश समुदाय और भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग शिक्षित भी हुए। उन शिक्षित लोगों ने यह सारा श्रेय शिक्षकों को और अपने परिवार के उन लोगों को दिया जो उनके कान और हाथ पकड़कर पाठशाला तक पहुंचाए थे। 

   शिक्षा के इस सफर में बहुततेरे संस्थाओं ने भी प्रयास किया। आजादी के बाद विद्यालयों के लिए भूमि दान की बड़ी परंपरा उभरकर आंदोलन के रूप में समाज के समक्ष आई। जिसमें प्राथमिक, माध्यमिक विद्यालय ही नहीं बल्कि विश्वविद्यालय तक स्थापित हुए।महात्मा गांधी जी ने भारत में तीन विद्यापीठ की स्थापना की और जीवन पर्यंत अपने कार्यों से भी समाज को सीख देते रहे।उन्होंने नई तालीम की बातें भी सबके समक्ष रखी। इस प्रयास में देश के बहुत से शिक्षा प्रेमियों ने भगीरथ प्रयास किया।

  प्रदेश और केंद्र की सरकार ने भी इसके लिए बड़ा प्रयास किया। गांव गांव विद्यालय स्थापित हुए, शिक्षकों की नियुक्ति हुई। प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा में उच्च डिग्री प्राप्त लोगों का प्रवेश हुआ। लेकिन कालांतर में शिक्षा प्रदान करना एक व्यवसाय हो गया।आज की वर्तमान स्थिति किसी से छिपी नहीं है।सभी प्रकार की समस्याओं के बीच में भी शिक्षक एक ऐसा आदर्श है जो अपना अधिकतम से अधिकतम देने का प्रयास करता है।उसके कर्म में कोई मिलावट नहीं होती। कक्षा में बैठा हर छात्र उसका खास और परम शिष्य होता है। शिक्षक की यह अभिलाषा की सभी बच्चे अच्छे अंक से उत्तीर्ण हो और सभी को अच्छा व्यवसाय प्राप्त हो,इसी की ओर लगा रहता है। हालांकि देश में कहीं कहीं कुछ भेदभावपूर्ण व्यवहार की सूचनाएं भी दृष्टिगोचर होती है। किंतु दावे के साथ कहा जाता है जा सकता है कि विशाल राष्ट्र और अधिक जनसंख्या वाले देश में तमाम उच्च आदर्शों पर एकाध  घटनाएं  परिश्रम पर पानी नहीं फेंक सकती। शिक्षकों का परिश्रम, राष्ट्र के नवांकुर को पोषित करने की उनकी इच्छाशक्ति को कोई कम नहीं कर सकता। भारतीय परंपरा में गुरु की महानता आज भी कायम है। किशोर वय के छात्रोंका तो आदर्श ही उसका शिक्षक होता है जो उसके किशोर मन पर गहरा छाप छोड़ जाते है।

    गुरु की गुरूता बनाए रखने के लिए शिक्षक समुदाय को भी शत प्रतिशत खरा उतरना पड़ेगा। आज भले ही कुछ लोग निरक्षर रह गए हो, संस्कारों में कमी आई हो लेकिन शिक्षक अपने दायित्वों के प्रति सजग होकर इस चुनौतीपूर्ण कार्य को पूर्ण कर रहा है। इन्हीं शिक्षकों की सजगता से साक्षरता और शिक्षा का स्तर शत-प्रतिशत होगा।शिक्षक दिवस पर उन शिक्षकों को जो औपचारिक रूप से और उन सीख देने वाले लोगों का जो अनौपचारिक रूप से प्रतिबद्धता के साथ डटे हुए हैं प्रणाम है, शिक्षक नमन करने योग्य है।

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