World Sparrow Day 2020": वाराणसी के इस सिख परिवार ने गौरेया के संरक्षण को समर्पित कर दिया है जीवन, जानें विस्तार से
"World Sparrow Day 2020" कंक्रीट के जंगलों की बढ़ती तादाद ने मनुष्य का प्रकृति से तादात्म्य तकरीबन समाप्त कर दिया है।
हरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने परिंदों के घरौंदो को नष्ट कर दिया है। अब न कौवे दिखते हैं न गौरैया। न चुनमुनिया दिखती है न कोयल। वो भी एक वक्त था जब घर की मुंडेर हो या आंगन गौरेयों की चहचहाट से लोगों की सुबह होती थी। लेकिन अब उस चहचहाट के लिए काम तरस जाते हैं। लेकिन शिव की नगरी काशी जिसे आनंद कानन भी कहा जाता है, वहां एक सिख परिवार ने गौरेयों के संरक्षण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। एक-दो नहीं पूरा परिवार परिंदों की सुरक्षा में दिन-रात जुटा रहता है। यह परिवार बसता है वाराणसी के गुरुबाग स्थित श्रीनगर कालोनी में। इंदरपाल सिंह ने साझा किए अपने अनुभव। तो जानते हैं क्या कहते हैं इंदरपाल उर्फ पप्पू...
घर के दरवाजे पर गौरैयों का झुंडदो दशक से लगे हैं गौरैया संरक्षण में
श्री नगर कालोनी निवासी इंद्रपाल सिंह बतरा "पप्पू" ने लगभग 20 साल पहले गौरैया के संरक्षण का बीड़ा उठाया। इसके पीछे भी एक मार्मिक कहानी है। पप्पू बतरा बताते हैं कि एक दिन अचानक घर के सामने लगा पेड़ काट दिए जाने से गौरैया का ठौर छिन गया। पंछियों की चहचहाट खत्म हो गई। हर सुबह बहुत सूना-सूना सा लगने लगा। इसे देख मन भारी हो गया। सोचते-सोचते यह तय किया कि अब फिर से अपने घर को गौरैया का बसेरा बनाएंगे। धीरे-धीरे समय बीतता गया, तिनका-तिनका जोड़ कर फिर से परिंदों ने अपना बसेरा बनाना शुरू किया। यह देख मन प्रसन्न हुआ तो अपने स्तर से भी छोटे-छोटे गमलों को उलटा कर दीवारों से जुड़वा कर परिंदों के लिए घरौंदा बनवा दिया। मेहनत ने रंग लाई और अब तो घर में सौ से ज्यादा गौरैया अपने परिवार के साथ दिन-रात चहकती रहती हैं। अब तो मेरा मन इन गौरैया की देखभाल में ही बसता है। गौरैया मेरे परिवार का हिस्सा हैं।
इंद्रपाल की पत्नी गौरैया संग तीन मंजिले मकान में गमलों को उलटा कर बनाया है घोंसला
पप्पू बतरा ने बताया कि गौरैया को अपने से दूर न होने देने के लिए मकान के मेन गेट पर बौगनवेलिया और शमी का पौधा लगवाया, अब दोनों ही बड़े हो गए हैं। बौगनवेलिया की लतर और शमी दोनों में ही गौरैया और अन्य परिंदों को छांव मिलती है। अब तो तीन मंजिले मकान की दीवारों पर दर्जनों छोटे गमलों को उल्टा कर प्लास्टर ऑफ पेरिस से चिपका घोंसला बना दिया है। इन घोसलों में पुराने कटे-फटे कपड़े, कटी घास और रुई रख दी है। इन घरौदों को ही गौरैयों ने अपना ठिकाना बना लिया है।
इंद्रपाल की बेटी गौरैया संग मोहल्ले भर की सुबह इन गौरैयों की चहचहाट संग
यहां रहने वाले सौ से ज्यादा जोड़ों के वंश बढ़ाने से गौरैया की संख्या इतनी ज्यादा कि सुबह के समय बाहर निकलने वाले इनके झुंड को देखने के लिए लोग टकटकी लगाए रहते हैं। इतना ही नहीं पास पड़ोस में भी इन गौरैया की चहचहाट सुनाई देती है। आस-पास के लोगों को भी इंतजार रहता है इस छोटी सी जान का कि वह कब आए और उसे दाना खिलाएं। लोगों ने तो गौरैया के लिए पानी और चावल रखना भी शुरू कर दिया है।
20 हजार से ज्यादा बच्चे ले चुके हैं इन घोसलों में जन्म
इंदरपाल बताते हैं कि पिछले दो दशक में 20 हजार से ज्यादा गौरैया के बच्चे जन्म ले चुके हैं इन घोसलों में। अब इनके कलरव को सुन मन प्रसन्न हो जाता है। आत्मिक शांति मिलती है इन्हें पाल कर।
गौरैया संरक्षण को बना ये घोंसलाबाज के शिकार गौरैया के बच्चों का करते हैं लालन-पालन
वह बताते हैं कि अक्सर ऐसे मौके अक्सर आते हैं मुझे खुद और मेरे परिवार को गौरैयों के बिन मां के बच्चों का लालन-पालन करना पड़ता है। बाज का शिकार बने गौरैया के बच्चों को घोंसले से निकाल दाना-पानी देने संग उड़ना भी सीखाते हैं।
गौरैया परिवार को छोड़ कर बाहर जाने पर उदास हो जाता है मन
इंद्रपाल की बेटी अमृता बताती है कि वह खिलौने की जगह गौरैया के बच्चों संग खेल कर बड़ी हुई हैं। ड्राइंगरुम हो या किचन अथवा मेरा कमरा, सुबह होते घोंसले से निकले गौरैया के बच्चे फुदकने लगते हैं। अमृता का कहना है कि इन्हें छोड़ बनारस से कहीं बाहर जाने पर मन उदास हो जाता है।
पीएम मोदी कर चुके है सराहन तो मुख्यमंत्री कर चुके हैं सम्मानित
इंदरपाल के इस कार्य की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं अपवे ट्विटर हैंडिल से। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले शिक्षक दिवस को इंदरपाल को सम्मानित किया था। उस मौके पर मुख्यमंत्री ने इंदरपाल और उनके परिवार को ऐसे कार्य सराहनीय कार्य जारी रखने की सलाह दी थी।
ये भी जानिए
- भारत में बीस साल के अंदर गौरैया की संख्या में 60 फीसद की कमी आई है
- ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में इनकी संख्या तेजी से गिर रही है
- नीदरलैंड में गौरैया को दुर्लभ प्रजाति के वर्ग में रखा गया है
- गौरैया की घटती संख्या के लिए पेड़-पौधे की कमी, कंक्रीट के जंगल और मोबाइल टॉवर प्रमुख कारण हैं
- गौरैया को बुलाने के लिए लोगों को घरों में घोंसले बनाने की जगह बनानी चाहिए।
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