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Monarchy vs Democracy : राजनीति में आड़े आ रही चुनावी मर्यादा, पार्टियां चाहती हैं चुनावी फायदा

Monarchy vs Democracy : राजनीति में आड़े आ रही चुनावी मर्यादा, पार्टियां चाहती हैं चुनावी फायदा

 Monarchy vs Democracy: , उत्तर प्रदेश तीन रियासतों के भारत संघ में विलय के बाद भी यहां के नरेश की उपाधि वापस नहीं ली गई। 
 इनमें काशी नरेश, टिहरी गढ़वाल नरेश और रॉयल फॅमिली ऑफ अवध के नवाब शामिल थे। यही वजह रही कि काशी नरेश डॉ. विभूति नारायण सिंह आजीवन काशी नरेश कहलाए। इस उपाधि की मर्यादा रखने के लिए काशी नरेश ने आजीवन लोकशाही की ओर रुख नहीं किया। परपंरा में इन्हें बनारस में बाबा विश्वनाथ का अवतार माना गया। आज भी यह राजपरिवार इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है। वर्तमान काशी नरेश अनंत नारायण सिंह राजा की मर्यादा के तहत किसी भी सियासी दल से बराबर दूरी बनाए हुए हैं। लेकिन राजनीतिक पार्टियां राजघराने से चुनावी फायदा लेने में जुटी हैं। राजपरिवार के अन्य सदस्यों पर चुनावी डोरे डाले जा रहे हैं।

 काशिराज डॉ विभूति नारायण सिंहहर-हर महादेव के उदघोष से होता है स्वागत

 काशी राज परिवार ने बनारस में बहुत सारे काम किए हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के निर्माण की बात हो या फिर विश्वनाथ मंदिर का प्रबंधन। राजपरिवार ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला, नाटी इमली का भरत मिलाप, तुलसी घाट की नाग नथैया और पंचगंगा घाट की देव दीपावली का उत्सव आज भी महाराज के आगमन के बाद ही शुरू होता है। इस परंपरा का निर्वाह डॉ विभूति नारायण के पुत्र कुंवर अनंत नारायण कर रहे हैं। काशी में वे जिधर से निकलते हैं हर-हर महादेव के उद्घोष से उनका स्वागत होता है। इस उदघोष में हिंदू और मुस्लिम दोनों बराबर के भागीदार होते हैं। पार्टियां महाराज की इस यूएसपी को भुनाना चाहती हैं। इसलिए उन पर दबाव है कि वह इस चुनाव में किसी के पक्ष में वोटिंग के लिए संदेश जारी करें। लेकिन महाराज ने चुनावों से दूरी बना रखी है।

 काशी नरेश को मानना मुश्किल

 हालांकि, अनंत नारायण के चाचा धर्महरि नारायण सिंह के पुत्र अहिभूषण सिंह सियासत से दूर रहने के पक्ष में नहीं हैं। इसलिए अहिभूषण से संपर्क साधने की हर दल कोशिश कर रहा है। लेकिन काशी राजमहल के सूत्रों का कहना है कि कुंवर अनंत नारायण सिंह शायद ही अपने चचेरे भाई के साथ सियासी मोर्चे पर खड़े दिखाई पड़ें। अहिभूषण सिंह के पिता धर्महरि नारायण सिंह की कभी सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से नजदीकी रही है। लेकिन वह खुलकर कभी राजनीति में सामने नहीं आए।

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