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UP Assembly Election : "जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि", बड़े काम के छोटे दल

UP Assembly Election : "जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि", बड़े काम के छोटे दल

 UP Election 2022 : रहीम का दोहा है, "रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।" पिछले कुछ चुनावों का आकलन करें तो ये दोहा यूपी की सियासत में एक दम सटीक बैठता है। यही वजह है कि बीजेपी और सपा जैसे बड़े दल इन छोटे-छोटे दलों को अहमियत दे रहे हैं।

 चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही जहां बड़े दल तैयारियों में जुटे हैं, वहीं छोटे दल भी गणित बैठाने जुटे हैं। एक आंकड़ों के मुताबिक पिछले चुनावों तक यूपी में 474 छोटे दल रजिस्टर्ड दल थे। जिनमें से 289 दलों ने चुनाव भी लड़ा था। इन छोटे दलों में करीब 15 ऐसे हैं जो जाति के दम पर यूपी की सियासत में खासा असर रखते हैं।

 "देखन में छोटे लगत घाव करे गंभीर"
 "सतसइया के दोहरे ज्यों नावक के तीर, देखन में छोटे लगत घाव करे गंभीर" दरअसल ये छोटे दल इसी तर्ज पर काम करते हैं। ये एक तरफ जहाँ बड़ें दलों का खेल बनाते हैं और तो उसी समय दूसरे का खेल बिगाड़ भी देते हैं। वैसे तो छोटे दल अक्सर किसी न किसी बड़े दल के साथ सहयोग कर ही लेते हैं। लेकिन अगर वे बिना गठबंधन के अपने दम पर चुनाव लड़ें तो जीतते नहीं हैं बावजूद इसके वो इस स्थिति में ज़रूर हो जाते हैं कि किसी बड़े दल का सियासी समीकरण बिगाड़ देते हैं और उनके प्रत्याशियों की हार का कारण बन जाते हैं। तो साथ ही दूसरे दल की जीत की वजह भी बनते हैं।

 वोट शेयर
 पिछले तीन विधानसभा चुनावों का आकलन करें तो इन छोटे दलों का कुल वोट शेयर 10-12 फीसदी रहा है, जिसमें सबसे प्रभावशाली वोट शेयर बीजेपी की सहयोगी पार्टी 'अपना दल' का रहा है।
 बीजेपी ने सबसे पहले छोटे दलों की अहमियत को समझा
 वैसे यूपी की सियासत में छोटे दलों की क्या अहमियत है, बीजेपी के रणनीतिकारों ने इस बात को काफी पहले और बखूबी जान लिया था। यही वजह है की 2012 के चुनावों से ही बीजेपी छोटे दलों के साथ गठबंधन करने की रणनीति पर काम करने लगी थी। जिसका फायदा उसे 2017 के चुनावों मेें मिला भी। इस चुनाव में बीजेपी ने 13 से ज्यादा छोटे दलों के साथ गठबंधन किया था।

 सपा, बसपा और कांग्रेस ने आपस में किया समझौता
 2017 के चुनाव में सपा-कांग्रेस जैसे बड़े दल तो 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा जैसी प्रमुख पार्टियाँ साथ में आयीं लेकिन कुछ कमाल नहीं दिखा सकीं। वहीं बीजेपी ने इस दौरान सिर्फ छोटे दलों को अहमियत दी और उनके साथ गठबंधन कर बाजी मार ली। शायद इसी से सबक लेते हुए इस बार समाजवादी पार्टी भी बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ गठबंधन कर रही है।

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