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Uttar Pradesh Election: चार दिन में बदल गया यूपी का चुनावी समीकरण, वर्षों बाद "मंडल"वाद बनाम "कमंडल"वाद की चर्चा

Uttar Pradesh Election: चार दिन में बदल गया यूपी का चुनावी समीकरण, वर्षों बाद "मंडल"वाद बनाम "कमंडल"वाद की चर्चा

 Uttar Pradesh में विकास और हिंदुत्व के नाम पर चुनाव लडऩे की भाजपा की योजना पर पानी फिर गया है। पिछले चार दिनों में भाजपा विधायकों के पाला बदल ने न केवल पार्टी को मुसीबत में डाल दिया है, बल्कि सपा ने बड़े ही सुनियोजित तरीके से यूपी के चुनावी समीकरण को तीन दशक बाद एक बार फिर मंडलवाल बनाम कममंडलवाद के मुद्दे पर लाकर पटक दिया है। भाजपा छोडऩे वाले विधायकों ने अति पिछड़ा वर्ग यानी एमबीसी की बदहाली की बात उठाकर भाजपा के 80 बनाम 20 यानी हिंदुत्व बनाम अल्पसंख्क के मुद्दे पर भी पानी फेर दिया है। एकाएक बदले चुनावी समीकरण से भाजपा सकते में है। वह एमबीसी को पुचकारने में जुट गयी है। चर्चा हर तरफ जात की हो रही है और मुद्दा पिछड़ों में अति-पिछड़ों का छिड़ गया है।

 ध्रुवीकरण को झटका

 बीजेपी ने 80 बनाम 20 की लड़ाई यानि 80 फीसदी हिन्दू बनाम 20 फीसदी मुसलमानों की बात कहकर ध्रुवीकरण का माहौल बनाने की कोशिश की थी। लेकिन एमबीसी वोट बैंक ने इस मुददे की हवा निकाल दी है। मुलायम सिंह यादव के हमकदम रहे ओबीसी वोट बैंक में से छिटकर निकला एमबीसी यानी मोस्ट बैकवर्ड क्लास ने सियासत की दिशा बदल दी है। अब हर तरफ जात की बात ही हो रही है। पिछड़ों में अति-पिछड़ों की चर्चा चल पड़ी है।

स्वामी ने दी एमबीसी को हवा

शुक्रवार को अपने समर्थक सात विधायकों के साथ समाजवादी पार्टी जॉइन करते समय स्वामी प्रसाद मौर्या ने मंडलवाद को और हवा दे दी। उन्होंने मंच से नारा दिया-वोट दें पिछड़े, मलाई खाएं अगड़े। उन्होंने कहा समाजवाद और अंबेडकरवाद का समागम यूपी की राजनीति में बड़ा कारनामा दिखाएगा। उन्होंने कहा-85 प्रतिशत हमारा, 15 प्रतिशत में बड़ा बंटवारा। इस तरह से उन्होंने नयी बहस को जन्म दे दिया।

 मोदी लहर की दीवार तोडऩे की कोशिश

 2014 के बाद से यूपी में जिन चुनावों में बीजेपी की जीत मिली उनमें मतदाताओं ने जाति से ऊपर उठकर एक नाम, एक पार्टी और राष्ट्रवाद को तरजीह दी। यानर मोदी लहर ने जातियों की दीवार तोड़ दी थी। इसीलिए सियासी दुश्मनी भूलकर अखिलेश और मायावती बुआ-भतीजा बन बैठे थे। 

 चार दिन में यूं बदला चुनावी समीकरण

 अखिलेश यादव ने चुनाव को नयी दिशा में मोडऩे के लिए चाल चली। पहले सपाकी सहयोगी सुभासपा के ओपी राजभर अति पिछड़ों के पिछड़पन की बात करते रहे। फिर एकाएक एमबीसी में शामिल योगी सरकार से इस्तीफा देने वाले तीनों मंत्री अति पिछड़ों का राग अलापने लगे। और अब चुनावी समीकरण हिंदुत्व और अल्पसंख्यक से हटकर मंडलवाद पर केंद्रित हो गया है।

 भाजपा को कंमडलवाद पर भरोसा

 पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की रैलियों में भाजपा विकास की बात करती रही। अब वह इन मुद्दों को भूलकर अयोध्या, काशी और मथुरा पर आकर अटक गयी है। वह हिंदुत्व की बात कर रही है।

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