UP Election 2022 : यूपी में रजवाड़ों से सियासी दलों का मोहभंग, इस बार नहीं मिल रही तवज्जो
UP Election, उत्तर प्रदेश में राजे-रजवाड़ों और सियासत की जुगलबंदी का अपना ही इतिहास है। भले ही रियासतें खत्म हो गयीं लेकिन, राजाओं की सियासत कायम है। अब जबकि, 18वीं विधानसभा का चुनाव नजदीक है, एक बार फिर कई राजपरिवार चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। लेकिन, यूपी की राजनीति में ऐसा पहली बार है जब राजपरिवारों की पूछ परख कम हुई है। भाजपा हो या फिर सपा दोनों प्रमुख दलों ने राजाओं और राजकुमारियों से दूरी बना रखी है। ऐसे में जैसे-जैसे चुनावी गतिविधियां बढ़ रही हैं सूबे के करीब 20 राजपरिवारों की धड़कनें भी तेज होती जा रही हैं। सबसे ज्यादा बेचैनी रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया में है। यह अब तक निर्दलीय जीतते आए हैं, लेकिन इस बार सपा और भाजपा दोनों ने इनके खिलाफ प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर ली है।
17वीं विधानसभा में जीते थे आधा दर्जन राजा-रानी
17वीं विधानसभा में करीब आधा दर्जन विधायक ऐसे हैं जो विभिन्न राजपरिवारों से जुड़े हैं। इनमें सपा, भाजपा और बसपा तीनों दल शामिल हैं। अमेठी राजघराने की रानी गरिमा सिंह भाजपा के टिकट पर अमेठी विधानसभा सीट से विधायक हैं।
टिकट के लिए परिक्रमा
गोंडा के मनकापुर राजघराने के राजा कुंवर आनन्द सिंह कभी पूर्वांचल में कांग्रेस का टिकट बांटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। 1967 तक इसी घराने के पास विधानसभा की सीट रहा करती थी। लेकिन, बाद में अजा के लिए सीट आरक्षित हो जाने के बाद यह राजघराना सीधे तौर पर चुनावी मैदान से दूर हो गया है। इस बार भी इन्हें कहीं से टिकट मिलने की संभावना नहीं दिख रही। वहीं आगरा के भदावर रियासत की रानी पक्षलिका सिंह जो बीहड़ की रानी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं वे अभी बीजेपी विधायक हैं। इस बार पार्टी उन्हें टिकट देगी या नहीं अभी तय नहीं है।
राजा भैया की राह इस बार आसान नहीं
प्रतापगढ़ के रघुराज प्रताप सिंह की बात करें तो वो ज्यादातर निर्दलीय ही चुनाव लड़ते हैं। जीतने के बाद किसी न किसी पार्टी से जुड़ जाते हैं। हालांकि, इस बार सपा या भाजपा उन्हें अपनी पार्टी से जोडऩे के इच्छुक नहीं हैं। सपा ने कुंडा में उनके खिलाफ प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर दी है। जबकि, योगी सरकार ने तो उनके खिलाफ एक पुराने मामले में सीबीआइ जांच फिर शुरू करवा दी है।
टिकट बंटवारे के बाद साफ होगी स्थिति
इस तरह रियासत और सियासत के इस मेल में अब इस बार कितनी रियासत अपनी सियासत बचा सकते हैं टिकट बंटवारे के बाद ही साफ हो सकेगा। मगर इतना तो तय की सियासी दलों का इन रजवाड़ों से पूरी तरह तो नहीं मगर थोड़ा बहुत ही मोह भंग होना शुरू हो गया है।
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