Varanasi UP News : वाराणसी में उजाड़े गए मुसहरों की ठंड में तिरपाल में ही कट रही जिंदगी, दीपावली जैसा पर्व भी उदासी में नही मनाया
वाराणसी, रोहनियां खुशियों का त्योहार है दीपावली। पर्व की खूबी भी यही है, जिनके हिस्से में कम रोशनी है ऐसे घर भी जगमगा उठते हैं इस दिन। दीपक से निकलने वाला प्रकाश पुंज भी एकरूपता का संदेश देता है।
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में एक ऐसा मुसहरों की बस्ती हैं जहाँ दीपावली की खुशियों के बीच जिंदगी का संघर्ष ज्यादा नजर आता है।करसड़ा गाँव के बनवासियो को प्रशासन द्वारा बीते शुक्रवार को उजाड़े गए परिवारो के लिए दीपावली को मनाना आसान नही है।
वे कहते है यह त्योहार बुल्डोजर से उजाड़े घरो मे कटी- फटी तिरपाल और बबूल के पेड़ के नीचे गुजर रहे है दीपावली की रात भी ऐसे ही गुजर जाएगी। टूटे घरों के गम खुशियाँ मनाने की इजाजत नही दे रहा। लेकिन बाजारों में रौनक है और उम्मीद की जा सकती है कि इसी रौनक का एक छोटा सा हिस्सा उन घरो तक भी पहुँचेगा जो गमगीन हैं, परेशान और हताश हैं। हम अपने पुश्तैनी ज़मीन पर दशको से थे तो हमे अवैध करार दिया गया और बुल्डोजर चलाकर हमारे मकान तोड़े गए। हम गरीब है न इसलिए हमारी कोई सुनता नही था हमे उजाड़ कर यहाँ खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया गया विरोध करने पर 4 बाँस, थोड़ी रस्सी और एक तिरपाल देकर कहा गया कुछ दिन रहो तुमको जमीन आवंटन कर देंगे जिससे मकान बना लेना। बाँस और रस्सी देखकर तो ऐसा लगा जैसे ठठरी बाँध लें खुद की और सो जाएँ हमेशा के लिए, लेकिन बच्चो का मुँह देखकर ऐसा भी नही कर सकते थे। सात दिन बीतने वाले हैं ठंड का मौसम झेल रहे है लेकिन हमारे पुश्तैनी ज़मीन पर हमे पुनः आवास बनाने और दोषियों के खिलाफ अबतक कोई ठोस कार्रवाइ नही हुई। दीवाली क्या मनाएँगे किस्मत मे अँधेरा लिखा है। बस ये मुसीबत और गरीबी जिस दिन मर जाएगी तो हम समझेंगे हमारी दीवाली आ गई। आंख में आँसू लिए बुद्धु राम मुसहर ने जब अपनी व्यथा बताई तो लगा सच में गरीबों की कोई सुनने वाला नहीं है। पिछले सात दिनों से काम धंधे बंद, सामाजिक संस्थाओं और राजनैतिक दलों द्वारा सहयोग से कुछ मदद मिले थे लेकिन कब तक और हमारी जमापूंजी इतने कम पैसों से तो परिवार का पेट भी नहीं भरता जिस दिन भर पेट खा पाएँगे, उसी दिन समझ लेंगे कि परिवार के साथ दीपावली मना ली यह कहना है, ई रिक्शा चलाकर परिवार का पेट भरने वाले राजेश का घर टूटने के कारण अपनी पुश्तैनी ज़मीन को बचाने के लिए बस्ती में है आर्थिक तंगी को भोग रहे हैं। इनकी ही तरह मेहनत मज़दूरी और मवेशी पालन कर अपना और अपने परिवार का पेट पालने वाले अन्य लोग भी परेशान हैं और बस्ती को बचाने के चलते हम कोई काम धंधा नहीं कर पा रहे हैं। मुसहर समुदाय के लोगो की तरफ से एक मेल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को किया गया है। अनुच्छेद 226 के तहत चीफ जस्टिस से 13 वनवासी परिवारों के ज़मीन पर कब्ज़ा करने की नीयत से उप जिला अधिकारी (प्रशिक्षु) राजातालाब मीनाक्षी पांडे और कानूनगो रामेश्वर तिवारी के खिलाफ शिकायत की गई है। इन दोनों के खिलाफ याचिका स्वीकार करने की गुहार लगाई गई है। इतना ही नही वनवासियों की ओर से दलित फ़ाउंडेशन से जुड़े याचिकाकर्ता राजकुमार गुप्ता ने इस मामले में एस सी -एसटी आयोग और एनएचआरसी से भी मामले में संज्ञान लेने को कहा है। करसड़ा में 13 लोगों को पट्टे दिए गए थे उसमें आवास का निर्माण कराए जा रहे हैं। अन्य सुविधाएँ भी प्रदान की जा रही हैं। एसडीएम उदयभान सिंह, वनवासियों ने प्रशासन के पट्टे वाली जगह पर जाने से किया इनकार, वैध कागज़ो के बावजूद बिना किसी नोटिस को दिए बगैर 29 अक्टूबर को 13 वनवासियों के घर जेसीबी लगा कर गिरा दिए गए थे। जिसके बाद जिला अधिकारी ने दो दिनों में जांच रिपोर्ट के बाद कार्रवाई की बात कही थी। जिसके बाद स्थानीय लेखपाल और उप जिला अधिकारी (प्रशिक्षु )के खिलाफ कार्रवाई भी की गई। आनन फानन में 13 परिवारों को पास में ही एक बंधे के बगल में पट्टे पर ज़मीन भी अलॉट कर दी गयी लेकिन अब इस मामले में वनवासियों ने जिला प्रशासन के दिये गए पट्टे वाली जगह पर जाने से इनकार कर दिया है। लेकिन वनवासी जिद्द पर अड़े कागज़ों के दावों की पड़ताल और ज़मीन खाली कराये जाने के मामले में हुई चूक को देखते हुए डीएम कौशल राज शर्मा ने तत्काल जांच कमेटी के रिपोर्ट के आधार पर उप जिला अधिकारी ( प्रशिक्षु ) को मुख्यालय से सम्बद्ध कर दिया और लेखपाल के निलंबन की कार्रवाई की वनवासी उसी ज़मीन पर फिर से बसाए जाने की मांग कर रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि जिस जगह ज़मीन आवंटित की गई है वहां थोड़ी बरसात में ही पानी लग जाता है। वो जिस जमीन पर दशकों से काबिज़ थे उसके कागज़ात उनके पास हैं फिर किस आधार पर उन्हें जबरन विस्थापित किया जा रहा है। इस मामले में विपक्ष के सपा और कांग्रेस पार्टी के नेताओ समेत कई सामाजिक संगठन के लोग भी सक्रिय हो गए हैं और आने वाले दिनों में ये एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। दीपावली के दिन पीड़ित परिवारों ने कहा कि हमारी पुश्तैनी ज़मीन प्रशासन द्वारा जबरन छीनी जा रही है। इसलिए हम लोगों ने शासन-प्रशासन के खिलाफ विरोध स्वरूप दीपावली नहीं मनाया है। जब घर ही नहीं है तो दीवाली किस बात की। पीड़ित परिवारों के भोजन की व्यवस्था रोटी बैंक कर रहा है, जो पीछले सात दिन से सभी पीड़ित परिवारों को भोजन करा रहा है। राजकुमार गुप्ता, बीरभद्र सिंह, अनिल कुमार, रश्मि सिंह, धीरेंद्र गिरी, भास्कर पटेल, रोशन पटेल, निखिल, अनूप दुबे आदि तमाम समाजसेवी इन परिवारों के साथ खड़े हैं और इनकी पूरी रखवाली भी कर रहे हैं जिनको भी प्रशासन द्वारा प्रताड़ित और झूठे मामले में फँसाने की धमकियाँ दी जा रही है।
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